हमारे कुल के वे दिवंगत पूर्वज जो किसी अशुभताओं के वशीभूत होकर अंतरिक्ष मण्डल में भटकते फिरते हैं अति अशुभ कर्मों के कारण अथवा अपने वंशजों के श्राद्ध तर्पण आदि शुभ क्रियाओं के अभाव के कारण दूसरा जन्म लेने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें प्रेत कहा जाता है I क्योंकि जन्म लेने के लिए अथवा किसी अन्य योनि में प्रवेश करने के लिए एक निश्चित एवं न्यूनतम शुभ कर्मों की पूंजी जरुरी होती है जिसके अभाव में अगला जन्म मिलना कठिन होता है इसलिए व्यक्ति को सदैव शुभ कर्मों का संचय अवश्य करना चाहिए I ये शुभ कर्म हम दूसरों को भी प्रदान कर सकते हैं I अकाल मृत्यु जैसे अग्नि, शस्त्र, दुर्घटना, डूबना, भयंकर रोग, आत्महत्या या मर्डर आदि के द्वारा असमय मृत्यु के प्राप्त हो जाने पर भी प्रेत योनि की प्राप्ति होती है क्योंकि ईश्वर ने सबको एक निश्चित आयु प्रदान की है I जैसे किसी की आयु प्रारब्ध वश 65 वर्ष की प्राप्त हुई किन्तु 35वें वर्ष में ही यदि किसी दुर्घटना के कारण उस जीव का शरीर नष्ट हो गया तो उसकी जीवनी शक्ति अगले 30 वर्षों तक भूत प्रेत आदि बनकर भटकती रहेगी क्योंकि विधान के अनुसार 65वें वर्ष से पहले उसको अगला जन्म नहीं मिल सकता अतः उनके वंशजों का कर्तव्य बनता है की उनकी मुक्ति या सदगति करवाएं I इस प्रकार की अतृप्त जीवात्माएं अपनी अशुभताओं के प्रभाव से परिवार में तरह- तरह के उपद्रव एवं अशान्तियाँ फैलाती हैं I कभी धन हानि, कभी पशु हानि, कभी रोगों की बहुलता तो कभी- कभी तो इन क्रुद्ध आत्माओं की तरंगों से घर में असमय एवं अकाल मृत्यु होने लगती हैं I
एक साधारण इंसान इन चीजों को नहीं समझ पाता और लगता है अपने हिसाब से कारण ढूंढने लगता है किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है तो आईये अविलंब अपने घर में हो रही अशुभताओं के निवारण के लिए संस्था के विद्वानों के द्वारा पितृ शांति विधान सम्पन्न करवाएं I जिसके अंतर्गत प्रेतत्व मुक्ति से लेकर पितृयों की सदगति तक समस्त कार्य सम्पन्न करवाए जाएंगे I
अभी आपने प्रेतों के बारें में जाना आईये पितृयों के बारे में भी बताएं I वे दिवंगत जीवात्माएं जिनके इतने शुभ कर्म नहीं हैं की वे मुक्ति को प्राप्त होँ और इतने अशुभ भी नहीं हैं की उन्हें नरक जाना पड़े I जिन्होंनें सन्तुष्ट भाव से मृत्यु की प्राप्ति की है, अंत समय में जिनकी कोई इच्छा शेष न थी उनको बुजुर्गों के एक विशेष लोक की प्राप्ति होती है जिसे पितृलोक कहा जाता है और उस लोक को प्राप्त करने वाले को पितृ या पितर कहा जाता है I ये पितृ गण अपनी संतानों के द्वारा अपने लिए श्राद्ध, भगवत प्राप्ति के श्रेष्ठ कर्म जैसे गीता पाठ, भागवद पाठ, पितृ गायत्री जाप आदि शुभ कर्मों की चाहना करते हैं जिससे उन्हें बल की प्राप्ति हो और उनके निमित इस प्रकार के पितृ शांति विधान करा दिए जाने पर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को धन- धान्य, श्रेष्ठ संतानें, उत्तम व्यापार, गृह शांति, बरकत एवं यश- कीर्ति- प्रतिष्ठा आदि का मुक्त कंठ एवं मुक्त हस्त से आशीर्वाद देते हैं I आईये एक कदम बढ़कर इस प्रकार के शुभ कर्मों को संस्था के माध्यम से सम्पन्न करवाकर उन पितृलोक वासी अपने बुजुर्गों को गुदगुदाने पर मजबूर करें I उनके हाथ उठें हमेशा आपके प्रति सुफलों की वर्षा में...............
उत्तम सदाचारी, मन्त्रविद, कर्मकाण्डी विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा आपके कल्याण हेतु कार्यों को सिद्ध कराने वाली विशिष्ट पूजाएं अत्यन्त मनोयोग के साथ आपके दुखों को ध्यान में रखकर सम्पन्न कराई जाती हैं I हजारों व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं I